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भए प्रकट कृपाला दीनदयाला

Posted on 13 December 202215 December 2022 By दाढ़ीवाला 1 Comment on भए प्रकट कृपाला दीनदयाला

भए प्रगट कृपाला दीनदयाला कौसल्‍या हितकारी ।

हर्षित महतारी मुनिमनहारी अद्भुत रूप बिचारी॥

कौशल्‍या का हित करने वाले, दीनदयाल, कृपा करने वाले भगवान, प्रकट हुए

ऋषिओं के भी मन को हरने वाले, इस अद्भुत रूप वाले प्रभु का ध्‍यान करके मां (कौशल्‍या जी) बहुत प्रसन्न हुईं

लोचन अभिरामा तन घनस्‍यामा निज आयुध भुज चारी ।

भूषन बनमाला नयन बिसाला सोभासिंधु खरारी ॥

नयनाभिराम (जिस पर नजर थम जाएं) सांवले रंग वाले प्रभु अपने चारों हाथों में अपने आयुध (अस्‍त्र-शस्‍त्र) लिये हुए

वनमाला (फूलों कीमाला) धारण किये हुए, बड़े-बड़े नयनों वाले सुंदरता के भण्‍डार स्‍वयं खड़े हैं

कह दुइकरजोरी अस्‍तुति तोरी केहि बिधि करौं अनन्‍ता।

माया गुन ग्‍यानातीत अमाना वेद पुरान भनंता ॥

दोनों हाथ जोड़कर (कौशल्‍या जी बोलीं) हे अनादि-अनन्‍त प्रभु, आपकी स्तुति (पूजा-अर्चना) किस प्रकार करूं,

वेद-पुराण ने आपको माया, गुण व ज्ञान से (भी) आगे बतलाया है

 

करूना सुखसागर सबगुनआगर जेहिं गावहिंश्रुति संता ।

सो मम हित लागी जन अनुरागी भयउ प्रगट श्रीकंता ॥

संतजन और सुनी हुई कथाओं में जिन्हें दया व सुख के सागर, सभी गुणों के भण्‍डार कहकर कहा गया है,

मेरे हित के लिए लोगों से प्रेम करने वाले, हे लक्ष्मीपति (श्रीहरि)

ब्रह्माण्‍ड निकाया मिर्मित माया रोम रोम प्रति बेद कहै ।

मम उर सो बासी यह उपहासी सुनत धीरमति थिर न रहै ॥

आपकी माया द्वारा निर्मित आपके रोम-रोम में न जाने कितने ही ब्रह्माण्ड पल रहे हैं, ऐसा वेदों में उल्‍लेखित है

आप मेरे भीतर (पुत्र रूप में) बसेंगे ऐसा मजाक सुनकर तो उनकी भी बुद्धि डोल जाएगी, जो स्थिर बुद्धि वाले (स्थितप्रज्ञ) संत हैं

 

 

उपजा जब ग्‍याना प्रभु मुसुकाना चरित बहुबिधि कीन्ह चहै ।

कहि कथा सुहाई मातु बुझाई जेहिं प्रकार सुत प्रेम लहै ॥

जब (कौशल्‍या जी को) ज्ञान हुआ कि प्रभु कई प्रकार की लीलाएं करना चाहते हैं, प्रभु मुस्‍कुराए (और बोले)

आप ही अपना सुझाव दीजिए कि मुझे पुत्र (रूप में मां का) प्रेम  किस प्रकार मिल सकेगा

माता पुनि बोली सो मति डोली तजहु तात यह रूपा ।

कीजै सिसुलीला अतिप्रियसीला यह सुख परम अनूपा॥

माता ने फिर कहा कि हे तात! यदि ऐसा है तो इस रूप को त्‍याग दीजिए,

यदि यह परम सुख चाहते हैं तो शिशु लीला कीजिए, जो सबको अतिप्रिय होती है

सुनि बचन सुजाना रोदन ठाना होइ बालक सुरभूपा  ।

यह चरित जे गावहिं हरिपद पावहिं ते न परहिं भवकूपा॥

माता के सुहाने वचन सुनकर तुरंत ही देवताओं पर भी शासन करने वाले (प्रभु श्रीहरि) बालक बनकर रोने लगे

श्रीरामचरितमानस का यह पद जो गाते हैं, श्रीहरि की शरण पाते हैं और भवसागर / कुएं में पहीं पड़ते

बिप्र धेनु सुर संत हित लीन्ह मनुज अवतार।

निज इच्छा निर्मित तनु माया गुन गो पार॥

 

विप्र (ज्ञानी), गाय, देवताओं व संतों के हित हेतु प्रभु ने मनुष्य रूप में अवतार लिया,

उनकी स्‍वयं की इच्छा से बना उनका रूप, माया, गुण व बुद्धि के पार (द्वारा नहीं जाना जा सकने वाला) है॥

तुलसीदास, श्रीरामचरितमानस Tags:अनंत, अनन्‍त, ऋषि, कृपाला, कौशल्‍या, गुण, जन्म, ज्ञान, पुराण, प्रकट, प्रगट, प्रभु, बालक, भए, भगवान, भव, माया, राम, लीला, वेद, शरण, श्रीराम, श्रीहरि, संत, सागर, हरि

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Comment (1) on “भए प्रकट कृपाला दीनदयाला”

  1. Rajkumar Mishra says:
    13 December 2022 at 10:40 pm

    जय जय राम जय श्री राम जय जय राम जय श्री हनुमान जय जय राम जय श्री हनुमान

    Reply

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