Skip to content
धर्म

धर्म

दाढ़ीवाले बाबा की पोटली

  • मुखपृष्‍ठ
  • सुंदरकाण्ड
    • सुंदरकाण्ड (दोहा-01)
    • सुंदरकाण्ड (दोहा-02)
    • सुंदरकाण्ड (दोहा-03)
    • सुंदरकाण्ड (दोहा-04)
    • सुंदरकाण्ड (दोहा-05)
    • सुंदरकाण्ड (दोहा-06)
    • सुंदरकाण्ड (दोहा-07)
    • सुंदरकाण्ड (दोहा-08)
    • सुंदरकाण्ड (दोहा-09)
    • सुंदरकाण्ड (दोहा-10)
    • सुंदरकाण्ड (दोहा-11)
    • सुंदरकाण्ड (सोरठा-12)
    • सुंदरकाण्ड (दोहा-13)
    • सुंदरकाण्ड (दोहा-14)
    • सुंदरकाण्ड (दोहा-15)
    • सुंदरकाण्ड (दोहा-16)
    • सुंदरकाण्ड (दोहा-17)
    • सुंदरकाण्ड (दोहा-18)
    • सुंदरकाण्ड (दोहा-19)
    • सुंदरकाण्ड (दोहा-20)
    • सुंदरकाण्ड (दोहा-21)
    • सुंदरकाण्ड (दोहा-22)
    • सुंदरकाण्ड (दोहा-23)
    • सुंदरकाण्ड (दोहा-24)
    • सुंदरकाण्ड (दोहा-25)
    • सुंदरकाण्ड (दोहा-26)
    • सुंदरकाण्ड (दोहा-27)
    • सुंदरकाण्ड (दोहा-28)
    • सुंदरकाण्ड (दोहा-29)
    • सुंदरकाण्ड (दोहा-30)
    • सुंदरकाण्ड (दोहा-31)
    • सुंदरकाण्ड (दोहा-32)
    • सुंदरकाण्ड (दोहा-33)
    • सुंदरकाण्ड (दोहा-34)
    • सुंदरकाण्ड (दोहा-35)
    • सुंदरकाण्ड (दोहा-36)
    • सुंदरकाण्ड (दोहा-37)
    • सुंदरकाण्ड (दोहा-38)
    • सुंदरकाण्ड (दोहा-39)
    • सुंदरकाण्ड (दोहा-40)
    • सुंदरकाण्ड (दोहा-41)
    • सुंदरकाण्ड (दोहा-42)
    • सुंदरकाण्ड (दोहा-43)
    • सुंदरकाण्ड (दोहा-44)
    • सुंदरकाण्ड (दोहा-45)
    • सुंदरकाण्ड (दोहा-46)
    • सुंदरकाण्ड (दोहा-47)
    • सुंदरकाण्ड (दोहा-48)
    • सुंदरकाण्ड (दोहा-49)
    • सुंदरकाण्ड (दोहा-50)
    • सुंदरकाण्ड (दोहा-51)
    • सुंदरकाण्ड (दोहा-52)
    • सुंदरकाण्‍ड (दोहा-53)
    • सुंदरकाण्ड (दोहा-54)
    • सुंदरकाण्ड (दोहा-55)
    • सुंदरकाण्ड (दोहा-56)
    • सुंदरकाण्ड (दोहा-57)
    • सुंदरकाण्ड (दोहा-58)
    • सुंदरकाण्ड (दोहा-59)
    • सुंदरकाण्ड (दोहा-60)
  • हनुमान चालीसा
  • भए प्रकट कृपाला दीनदयाला
  • Toggle search form

सुंदरकाण्ड (दोहा-14)

Posted on 28 May 2021 By दाढ़ीवाला

हरिजन जानि प्रीति अति गाढ़ी। सजल नयन पुलकावलि बाढ़ी।।

बूड़त बिरह जलधि हनुमाना। भयहु तात मो कहुँ जलजाना।।

अब कहु कुसल जाउँ बलिहारी। अनुज सहित सुख भवन खरारी।।

कोमलचित कृपाल रघुराई। कपि केहि हेतु धरी निठुराई।।

सहज बानि सेवक सुखदायक। कबहुँक सुरति करत रघुनायक।।

कबहुँ नयन मम सीतल ताता। होइहहिं निरखि स्‍याम मृदु गाता।।

बचनु न आव नयन भरे बारी। अहह नाथ हौं निपट बिसारी।।

देखि परम बिरहाकुल सीता। बोला कपि मृदु बचन बिनीता।।

मातु कुसल प्रभु अनुज समेता। तव दुख दुखी सुकृपा निकेता।।

जनि जननी मानहु जियँ ऊना। तुम्ह ते प्रेम राम कें दूना ।।

रघुपति कर संदेसु अब सुनु जननी धरि धीर।

अस कहि कपि गदगद भयउ भरे बिलोचन नीर।। १४।।

हरि का दास जानकर, सीताजी के मन में (हनुमान जी के प्रति) इतना प्रेम उमड़ आया कि प्रेमवश आंखों में जल भर आया।

कहने लगीं- विरह के सागर में मैं डूबती जा रही थी, (हे हनुमत) तुमने आकर मुझे डूबकर मरने से बचा लिया।

अच्‍छा, जिन पर मैं बलिहारी हो जाऊं (होने को तत्पर रहती हूं) उन सुख धाम (श्रीराम) की छोटे भाई सहित कुशल क्षेम कहो।

रघुवीर तो काफी कोमल चित्‍त (सरल स्वभाव) वाले हैं, फिर उन्होंने (मेरे प्रति) इतनी निष्ठुरता क्यों धारण कर रखी है?

सहज रहने-बोलने वाले, सेवकों को सुखी रखने वाले, कभी मुझे याद भी करते हैं ?

कब प्रभु के सांवले सुकुमार शरीर को देखकर मेरे नयन शीतल होंगे (कब इन आंखों को सन्तुष्टि मिलेगी) ?

वचन भी नहीं आते, बारम्‍बार नयन भरे आते हैं, इस प्रकार मुझे बिल्‍कुल भूल गये।

सीताजी को विरह से व्याकुल देखकर, हनुमान जी ने मधुर वाणी में कहा

माता, प्रभु अपने छोटे भाई के साथ कुशल से हैं, बस आपही के दुख के कारण दुखी हैं।

मेरा विश्वास करो मां, मन छोटा न करो, प्रभु के मन में (आपके लिए) आपसे दुगुना प्रेम है।

माता अब श्रीरघुपति का संदेश धैर्य के साथ सुनो, ऐसा कहकर कपि (कपीश-हनुमान जी) गद्गद हो गये जिससे उनके नयनों में भी पानी भर आया।

सुंदरकाण्ड Tags:ashok watika, god, hanuman, hindu, human, monkey, ram, rama, ramayan, ramayana, ring, sita, sunder kand, sunderkand, tulsi das, tulsidas, अंगूठी, अशोक वाटिका, तुलसी दास, तुलसीदास, नर-वानर, बन्‍दर, मारूति, मुद्रिका, राम, रामायण, वानर, सीता, हनुमान

Post navigation

Previous Post: सुंदरकाण्ड (दोहा-13)
Next Post: सुंदरकाण्ड (दोहा-15)
  • दाढ़ीवाला (तकनीकी ब्लॉग)
  • हिंदी टूल्स
  • ट्वि्टर पर जुड़ें
  • फेसबुक पर जुड़ें
  • यू-ट्यूब पर जुड़ें

Copyright © 2023 धर्म.

Powered by PressBook WordPress theme