सुंदरकाण्ड (दोहा-60)
नाथ नील नल कपि द्वौ भाई। लरिकाईं रिषि आसिष पाई।। तिन्ह कें परस किएँ गिरि भारे। तरिहहिं जलधि प्रताप तुम्हारे।। मैं पुनि उर धरि प्रभु प्रभुताई। करिहउँ बल अनुमान सहाई।। ऐहि बिधि नाथ पयोधि बँधाइअ। जेहिं यह सुजसु लोक तिहुँ गाइअ।। एहिं सर मम उत्तर तट बासी। हतहु नाथ खल नर अघ रासी।। सुनि कृपाल…