सुंदरकाण्ड (दोहा-56)
राम तेज बल बुधि बिपुलाई। सेष सहस सत सकहिं न गाई॥ सक सर एक सोषि सत सागर। तव भ्रातहि पूँछेउ नय नागर॥ तासु बचन सुनि सागर पाहीं। मागत पंथ कृपा मन माहीं॥ सुनत बचन बिहसा दससीसा। जौं असि मति सहाय कृत कीसा॥ सहज भीरू कर बचन दृढाई। सागर सन ठानी मचलाई॥ मूढृ मृषा का करसि…