सुंदरकाण्ड (सोरठा-12)
त्रिजटा सन बोलीं कर जोरी। मातु बिपति संगिनि तैं मोरी।। तजौं देह करू बेगि उपाई। दुसह बिरहु अब नहिं सहि जाई।। आनि काठ रचु चिता बनाई। मातु अनल पुनि देहि लगाई।। सत्य करहि मम प्रीति सयानी। सुनै को श्रवन सूल सम बानी।। सुनत बचन पद गहि सुझाएसि। प्रभु प्रताप बल सुजसु सुनाएसि।। निसि न अनल…