सुंदरकाण्ड (दोहा-50)
अस प्रभु छाडि. भजहिं जे आना। ते नर पसु बिनु पूँछ बिषाना।। निज जन जानि ताहि अपनावा। प्रभु सुभाव कपि कुल मन भावा।। पुनि सर्बग्य सर्ब उर बासी। सर्बरूप सब रहित उदासी।। बोले बचन नीति प्रतिपालक। कारन मनुज दनुज कुल घालक।। सुनु कपीस लंकापति बीरा। केहि बिधि तरिअ जलधि गंभीरा।। संकुल मकर उरग झष जाती।…