सुंदरकाण्ड (दोहा-58)
लछिमन बान सरासन आनू। सोषौं बारिधि बिसिख कृसानू।। सठ सन बिनय कुटिल सन प्रीती। सहज कृपन सन सुंदर नीती।। ममता रत सन ग्यान कहानी। अति लोभी सन बिरति बखानी।। क्रोधिहि सम कामिहि हरिकथा। ऊसर बीज बऍं फल जथा।। अस कहि रघुपति चाप चढ़ावा। यह मत लछिमन के मन भावा।। संधानेउ प्रभु बिसिख कराला। उठी उदधि…