सुंदरकाण्ड (दोहा-55)
ए कपि सब सुग्रीव समाना। इन्ह सम कोटिन्ह गनइ को नाना।। राम कृपॉं अतुलित बल तिन्हहीं। तृन समान त्रैलोकहि गनहीं।। अस मैं सुना श्रवन दरकंधर। पदुम अठारह जूथप बंदर।। नाथ कटक महँ सो कपि नाहीं। जो न तुम्हहि जीतै रन माहीं।। परम क्रोध मीजहिं सब हाथा। आयसु पै न देहिं रघुनाना।। सोषहिं सिंधु सहित झष…