सुंदरकाण्ड (दोहा-41)
बुध पुरान श्रुति संमत बानी। कही बिभीषन नीति बखानी।। सुनत दसानन उठा रिसाई। खल तोहि निकट मृत्यु अब आई।। जिअसि सदा सठ मोर जिआवा। रिपु कर पच्छ मूढ. तोहि भावा।। कहसि न खल अस को जग माहीं। भुज बल जाहि जिता मैं नाहीं।। मम पुर बसि तपसिन्ह पर प्रीती । सठ मिलु जाइ तिन्हहि कहु…