सुंदरकाण्ड (दोहा-37)
श्रवन सुनी सठ ता करि बानी। बिहसा जगत बिदित अभिमानी।। सत्य सुभाउ नारि कर साचा। मंगल महुँ भय मन अति काचा।। जौं आवइ मर्कट कटकाई। जिअहिं बिचारे निसिचर खाई।। कंपहिं लोकप जाकीं त्रासा। तासु नारि सभीत बडि़. हासा।। अस कहि बिहसि ताहि उर लाई। चलेउ सभॉं ममता अधिकाई।। मंदोदरी हृदयँ कर चिंता। भयउ कंत पर…