सुंदरकाण्ड (दोहा-40)
माल्यवंत अति सचिव सयाना। तासु बचन सुनि अति सुख माना।। तात अनुज तव नीति विभूषन। सो उर धरहु जो कहत बिभीषन।। रिपु उतकरष कहत सठ दोऊ। देरि न करहु इहॉं हइ कोऊ।। माल्यवंत गृह गयउ बहोरी। कहइ बिभीषनु पुनि कर जोरी।। सुमति कुमति सब कें उर रहहीं। नाथ पुरान निगम अस कहहीं।। जहां सुमति तहँ…