सुंदरकाण्ड (दोहा-22)
जानउँ मैं तुम्हारि प्रभुताई। सहसबाहु सन परी लराई।। समर बालि सन कर जसु पावा। सुनि कपि बचन बिहसि बिहरावा।। खायउँ फल प्रभु लागी भूँखा। कपि सुभाव तें तोरेउँ रूखा।। सब कें देह परम प्रिय स्वामी। मारहिं मोहि कुमारग गामी।। जिन्ह मोहि मारा ते मैं मारे। तेहि पर बॉंधउँ तनयँ तुम्हारे।। मोहि न कछु बॉंधे कइ…